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प्रयोगशालाएँ/केंद्र

पृष्ठभूमि

हिम एवं हिमनद से आच्छादित क्षेत्र किसी भी हिमनदीय बेसिन क्षेत्र की जलविज्ञानिकी में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। हिमालय के स्थायी हिम एवं हिमनद क्षेत्र एक महत्वपूर्ण स्वच्छ जल के जलाशय के रूप में कार्य करते हैं, जो वर्षभर विशाल मात्रा में ताजे जल का आपूर्ति करती हैं। उच्च हिमालयी बेसिन से जल की आपूर्ति पेय जल, सिंचाई, जलविद्युत उत्पादन तथा मनोरंजन जैसे विविध उपयोगों के लिए एक विश्वसनीय स्रोत माने जाते है।

दक्षिण एशिया की सभी प्रमुख नदियाँ—जो हिमालय से उद्गमित होती हैं—मुख्य रूप से हिम एवं हिमनद गलित जल से पोषित होती हैं। भौगोलिक दृष्टि से पश्चिम से पूर्व तक हिमालय को उनके अक्षांशों और स्थलाकृतिक विशेषताओं के आधार पर तीन वर्गों में वर्गीकृत किया गया है, अर्थात् पश्चिमी हिमालय, मध्य हिमालय और पूर्वी हिमालय। भारतीय हिमालय क्षेत्र में तीन प्रमुख नदी प्रणालियाँ गंगा, सिंधु, और ब्रह्मपुत्र स्थित है जो उत्तरी भारत की करोड़ों जनसंख्या के लिए जीवनरेखा हैं।

हिमालय में हिमच्छादन की मात्रा पश्चिम से पूर्व की ओर भिन्न है, जिससे नदियों के प्रवाह तंत्र पर स्पष्ट प्रभाव पड़ता है। पश्चिमी हिमालय के उत्तरीआ भागों में पूर्वी हिमालय की तुलना में अधिक हिमपात तथा कम वर्षा होती है, जबकि पूर्वी हिमालय में वर्षा का योगदान अपेक्षाकृत अधिक होता है। मौसमी हिम के साथ-साथ हिमालयी हिमनदों में विशाल जल भंडारण निहित है, जो स्वच्छ जल का एक अत्यंत महत्वपूर्ण स्रोत है।

हिमालय में लगभग 33,000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र हिमनदों से आच्छादित है, जिनकी आकृतियाँ एवं आकार भिन्न-भिन्न हैं। 9,600 से अधिक हिमनदों के साथ भारतीय हिमालय, ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद संसार में हिमनदों के सबसे बड़ी सघन वाले क्षेत्रों में गिना जाता है।

हिमालयी नदियों में सरिता प्रवाह मुख्य रूप से वर्षा, हिमपात तथा हिमनद गलित अपवाह से उत्पन्न होता है। प्रारंभिक ग्रीष्मकाल में हिमालय की ऊंची चोटियों पर हिमनद गलित अपवाह हिमालय से उद्गमित वाली कई नदियों के लिए जल का एक प्रमुख स्रोत है। एक अनुमान के अनुसार, हिमालय का लगभग 10–20% क्षेत्र हिमनदीय बर्फ से और 30–40% क्षेत्र मौसमी हिम से आच्छादित है। आंशिक रूप से हिमनदीय बेसिन क्षेत्रों से जल प्रवाह में अक्टूबर से फरवरी तक का समय न्यूनतम प्रवाह काल माना जाता है, जबकि मार्च–अप्रैल में हिमपघलन के साथ प्रवाह में वृद्धि होती है, तथा जुलाई–अगस्त में अधिकतम निस्सरण प्राप्त होता है।

क्षेत्रीय जलविज्ञानी अध्ययनों से संकेत मिलता है कि आगामी शताब्दी में हिम एवं हिमनद विस्तार में गिरावट, विशेष रूप से सिंधु और ब्रह्मपुत्र नदी जलविभाजको में, अत्यधिक हानिकारक सिद्ध होगी क्योंकि इन क्षेत्रों में हिमनद घलन का योगदान अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह अनुमान लगाया गया है कि हिमालय में वर्तमान हिमनदों में उपलब्ध हिम की मात्रा का लगभग 30%-88% भाग विलुप्त हो सकता है, जो 2100 वर्ष तक जल संसाधनों के लिए एक बड़े खतरे का संकेत है।

इन्हीं समस्याओ के समाधान हेतु राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान (NIH) में हिममंडल एवं जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र की स्थापना की गई है।

दृष्टिकोण (Vision)

इस केंद्र की स्थापना का उद्देश्य देश में हिम एवं हिमनद संसाधनों के प्रभावी प्रबंधन को सुगम बनाना है, जिससे जल उपलब्धता से संबंधित समस्याओ चिंताओं का समाधान किया जा सके। प्रस्तावित केंद्र का प्रमुख उद्देश्य जलवायु परिवर्तन की परिदृश्यों के अंतर्गत भविष्य में संभावित जल संकट को संबोधित करना है। हिम एवं हिमनद परिवर्तन की गतिकी तथा इसका जलवायु परिवर्तन से संबंध इस केंद्र के प्रमुख अनुसंधान क्षेत्र होंगे।

उद्देश्य (Objectives)

क्रायोस्फीयर प्रयोगशाला (Cryosphere Lab) के प्रमुख उद्देश्य निम्नलिखित हैं:

  • जलवायु परिवर्तन के प्रभावों सहित हिम एवं हिमनद अध्ययनों में वैज्ञानिक संस्कृति को प्रोत्साहित करना एवं अविरत्ता सुनिश्चित करना रखना।
  • विभिन्न हिम एवं हिमनद गलन अपवाह सहित कुल जल संतुलन के आंकलन हेतु विभिन्न हिम हिमजलविज्ञानीय निर्देशों के एकीकरण द्वारा प्रभावी अनुकरण हेतु एक नविन संरचना विकसित करना।
  • हिम एवं हिमनद गतिकीय में होने वाले परिवर्तनों का मूल्यांकन तथा उनके गलन अपवाह पर पड़ने वाले प्रभावों का मूल्यांकन करना।
  • CMIP5/CMIP6 बहुनिदर्श प्रयोगात्मक परिदृश्यों के उपयोग द्वारा हिमालय में हिम-हिमनद जलविज्ञान पर जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का विश्लेषण करना।
  • दक्षिण-पूर्व एशियाई एवं दक्षेस (SAARC) सदस्य देशों सहित भारत एवं अंतरराष्ट्रीय अनुसंधान संस्थानों/विश्वविद्यालयों के साथ हिम एवं हिमनद अनुसंधान में सहयोग करना।
  • हिम एवं हिमनद अध्ययनों के क्षेत्र में कार्यरत राज्य सरकारों एवं अन्य संगठनों के साथ मिलकर हिम एवं हिमनद संबंधित विषयो पर कार्यशालाओं, जागरूकता कार्यक्रमों एवं प्रशिक्षण कार्यक्रमों के आयोजन में सहयोग करना।
  • जलविद्युत परियोजनाओं से संबंधित उपयोगकर्ताओ एजेंसियों एवं प्राधिकरण को परियोजना के सुरक्षित अभिकल्पना के लिए परामर्श सेवाएँ प्रदान करना।
  • अन्य शोध समूहों, शिक्षाविदों, नीति निर्माताओं एवं आम जनता के मध्य सेतु निर्माण कर नवाचार आधारित दृष्टिकोण को प्रोत्साहित करने में सहयोग करना।
  • हिमालय क्षेत्र में जल जलवायु निदर्शन के माध्यम से जलवायु अनिश्चितता के अंतर्गत अनुप्रवाह क्षेत्रों में जल अविरलता के लिए दीर्घकालिक योजनाओं का निर्माण ।

अध्यक्ष: डॉ० सुरजीत सिंह, वैज्ञानिक-जी एंव अध्यक्ष

प्रभारी अधिकारी: डॉ विशाल सिंह, वैज्ञानिक 'डी'
हिममंडल और जलवायु परिवर्तन अध्ययन केंद्र
राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान
रुड़की – 247667 (उत्तराखण्ड), भारत
फ़ोन: 01332-249230
फैक्स: 01332-272123, ईमेल: surjeet[dot]nihr[at]gov[dot]in

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