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परिचय

Dr. M. K. Goel
Scientist-G & Head
Water Resources Systems Division
National Institute of Hydrology
Roorkee – 247667 (Uttarakhand), India
Ph: 01332-249262
Fax: 01332-272123, Email: mkg[dot]nihr[at]gov[dot]in

प्रभाग के बारे में

भारत में जल संसाधनों के प्रबंधन से सम्बंधित अनेकोँ समस्याएँ पाई जाती हैं: क) देश की जल उपलब्धता में स्थानिक और कालिक रूप में वृहत्त परिवर्तनशीलता तथा जल की उपलब्धता एवं जल की माँगों में बहुत अधिक अंतर, जिसके परिणामस्वरूप देश को समय – समय पर बाढ़, सूखा, मृदा कटान एवं जलाशय अवसादन आदि आपदाएँ का सामना करना पड़ता है। ख) मुख्य रूप से जनसंख्या में तीव्र वृद्धि, सिंचाई के लिए जल की आवश्यकता में वृद्धि, औद्योगीकरण, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन के कारण हमारे देश के अधिकाँश भाग में जल की आवश्यकता में वृद्धि हो रही है परिणामतः उपलब्ध जल संसाधनों पर दवाब बढ़ रहा है; और ग) जलविज्ञान और संबंधित क्षेत्रों पर सुलभ आंकडो की उपलब्धता में कमी। जल के इष्टतम उपयोग और पर्यावरण स्थिरता पर उचित ध्यान दिए बिना अधिकांशतः जल संसाधन परियोजनाओं की योजना प्रथक तकनीकों से तैयार की जाती है। जल संसाधन तंत्र प्रभाग इन समस्याओं के समाधान हेतु निरंतर कार्यरत है। प्रभाग ने मध्य हिमालय (हेनवल, उत्तराखंड) एवं पश्चिमी हिमालय (लेह, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर) क्षेत्रों में प्रायोगिक जलविज्ञानीय कार्यों का प्रारम्भ किया है, जिसमें स्वचालित मौसम केंद्र, स्वचालित जल स्तर रिकॉर्डर जैसे उन्नत स्वचालित उपकरणों से सुसज्जित एक अत्याधुनिक जलविज्ञानीय क्षेत्रीय वेधशाला की स्थापना सम्मिलित है। प्रभाग राष्ट्रीय जलविज्ञान परियोजना (एन.एच.पी), हिमालयी पारिस्थितिकी तंत्र को बनाए रखने के लिए राष्ट्रीय मिशन (एन.एम.एस.एच.ई), और हिमालयी अध्ययन पर राष्ट्रीय मिशन (एन.एम.एच.एस) परियोजनाओं में सक्रिय रूप से भाग ले रहा है।

प्रभाग का विजन

जल संसाधन तंत्र प्रभाग, बेसिन पैमाने पर जल संसाधनों के एकीकृत और इष्टतम प्रबंधन के लिए कार्यप्रणाली को विकसित करने और उसे प्रचालित कर जल की समस्याओं के लिए सम्भाव्य समाधान प्रदान करने के लिए दृढ़ संकल्पित है। प्रभाग मुख्यतः निम्न प्रमुख कार्य क्षेत्रों में संलग्न है:

  • नदी बेसिन में जल संसाधनों के एकीकृत मूल्यांकन और इष्टतम प्रबंधन के लिए कार्यप्रणाली को विकसित करना और प्रचालित करना।
  • वाष्पोत्सर्जन, मृदा आद्रता, पुनःपूरण, अपवाह आदि जलविज्ञानीय प्रक्रमों को समझने के लिए एक प्रयोगात्मक जलग्रहण क्षेत्र की स्थापना और संचालन ।
  • हिम/हिमनद तथा पर्माफ्रॉस्ट (permafrost) प्रक्रियाओं को समझने और उनके निदर्शन के लिए क्रायोस्फेरिक (Cryospheric) अध्ययन।
  • जल संसाधनों के योजनीकरण एवं प्रबंधन के लिए सूदूर संवेदन एवं भौगोलिक सूचना तंत्र जैसे उन्नत यंत्रों का विकास एवं अनुप्रयोग।
  • जल तन्रों के विश्लेषण के लिए उपयोगकर्ता के अनुकूल सॉफ्टवेयर विकसित करना।
  • जल संचालन के लिए वैज्ञानिक सहयोग प्रदान करना।
  • वेब आधारित जल संसाधन सूचना तंत्र को विकसित करना
पृष्ठ अंतिम बार दिनांक 27.02.2023 को अपडेट किया गया